Thursday 17 October 2013

" मैं जाग रही "


कृष्णपक्ष की,
भयप्रद विभावरी
चहुँओर निःस्तब्ध ..
घनघोर ध्वान्त !
सभी विटप, तरु
सो रहे गहन 
निद्रा में लीन ..
बेसुध विश्रांत !
मैं जाग रही
यादों के संग,
कुछ संस्मरण,
करे चित्त विभ्रांत ... !!
 © कंचन पाठक.

1 comment:

  1. लाजवाब , आपका जवाब नहीं . बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है .

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