" तुम्हारी दृष्टी "
तुम्हारी दृष्टि
जैसे विद्युत् की कौंध
जो क्षणांश में
अपनी कनक-रेखा से
आकृष्ट कर
मुग्ध कर जाती ...
तुम्हारी दृष्टि
जैसे भैरवी की कोई
ह्रदय-स्पर्शिनी तान
जो मन प्राणों को
उद्वेलित कर
प्रेम-कुसुम महका जाती
सोई पीड़ा जगा जाती
दृग-बिन्दु छलका जाती..!!!!
© कंचन पाठक.
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